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हिंदु - मुस्लिम एकता के प्रतीक राजर्षी शाहू महाराज

राजर्षी शाहू महाराज का मुस्लिम समाज के प्रति कौन सा दृष्टीकोण था? जानने के लिए पढिए शेख सुभान अली का विश्लेषण....

हिंदु - मुस्लिम एकता के प्रतीक राजर्षी शाहू महाराज
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1893 मै मुंबई मै पहला हिंदू - मुस्लिम दंगा हुवा. इसका फायदा उठाकर बाल गंगाधर टीलक ने गणेशोत्सव मे मुसलमानों के खिलाफ बहुत जहेर उगला, और मुंबई की तरह पुणा मे भी दंगा करवाया.. हिंदू और मुस्लिम समाज मै नफरत और दुरी पैदा करने मे टिलक कामयाब हो गया. उसी साल 1894 मै पुणा के सार्वजनिक सभा ने राजर्षि शाहू महाराज का सत्कार किया. इसी सत्कार सभा मे अपने भाषण में शाहु महाराज ने पुणा मे हुये हिंदु - मुस्लिम दंगे का उल्लेख कर सार्वजनिक सभा के कार्यकर्ताओं को हिंदू और मुस्लिम समुदाय मे प्रेम-बंधुत्व निर्माण कर समाज मे शांती बनाये रखने का उपदेश किया.

यह बात आज 2017 मे आपको सामान्य लगती होगी लेकीन 1894 मे युवा छत्रपती शाहू महाराज ने 123 साल पहले दंगो की राजनीती और उसके समाज और राष्ट्र पर होनेवाले विपरीत परिणाम को अपनी दूरदृष्टि से देख लिया था. ब्राम्हणवाद बहुजन समाज को गुलाम बनाने के लिए अब मनुस्मृति का नही बल्कि दंगो का इस्तेमाल करेगा यह बात उनके समज मै आगयी थी. वे सारी जिंदगी यही कोशीश करते रहे की ब्राम्हणवाद के बहकावे मे आकर हिंदु - मुस्लिम आपस मे ना लडे. सामाजिक एकात्मता और राष्ट्रीय एकात्मता मजबूत करने के लिए हिंदू-मुस्लिम समाज मे एकता होना जरुरी है यह बात वे हमेशा समाज को समझाते..

1920 के एक भाषण में राजर्षि शाहू महाराज कहते है,

हिंदू और मुसलमान एक ही राष्ट्र के भिन्न-भिन्न अंग है. आज सारा भारत सांप्रदायिकता से परेशान है, जातीय गृह युद्ध सी स्थिति निर्माण हो चुकी है. प्राणी के तुलना मे आदिवासी, दलित, पिछडा और मुसलमान इनकी जान का कोई महत्व नही बचा है..

हर व्यक्ती दुखी है अफसोस कर रहा है, दंगो मे होनेवाले बलात्कार, हत्या, अनाथ होने वाले मासुम बच्चे, विधवा होनेवाली हमारी बहने, बेसहारा होनेवाले बुढे माॅ - बाप, जलकर राख होती बस्तियां के बस्तियां, बे चिराग होते शहर के शहर देखकर फिर अफसोस करने से क्या फायदा.

ऐसा न हो इसलिए सामूहिक स्तर पर आज तक कोई कोशिश हुई क्या? नही. इसी सांप्रदायिक संकट को शाहू महाराज ने 123 साल पहले भांप लिया था और कहा था के आप हिंदु - मुस्लिम एकता बनाये रखने के लिए विशेष प्रयास करे.

उन दिनों ब्राम्हण और प्रभू यह जातीच्या छोडकर सभी मराठा, लिंगायत, जैन, मुस्लिम समाज पिछडा था. इसका प्रमुख कारण शिक्षा का ना होना था. 1901 मे शाहू महाराज ने मराठा और जैन बोर्डिंग कि स्थापना कि. मुस्लिम समाज के प्रतिष्ठित लोगो को शाहु महाराज ने शिक्षा कि रूची समाज पैदा करने के लिए कोशीश करने को कहा और उसके लिए जो भी मदद लगेगी वो देने का वादा भी किया लेकिन कोई सामने नही आया. तब भी शाहू महाराज खामोश नही बैठे. उन्होने 10 होनहार जरुरतमंद मुस्लिम बच्चो को व्हिक्टोरिया मराठा बोर्डिंग मे अडमीशन देकर संस्थान मे मुस्लिम शिक्षा कि शुरुआत कि। इनमें 10 विद्यार्थियों मे 1 कर्नाटक के अथनी गांव का शेख मंहमद युनुस अब्दुल्ला था।

मंहमद युनुस राजाराम कालेज से ग्रॅज्युएट होने के बाद शाहू महाराज ने उसे अपने ही संस्थान पर मामलेदार पद पर नियुक्त किया।आज के मुसलमानो ने जरा सोचना चाहिए 125 साल पहले आपकी शिक्षा के लिए चिंतित होनेवाला, अपने पैसो सै शैक्षणिक संस्था निर्माण कर शिक्षा कि व्यवस्था करने वाला, और बाद मे अपने ही संस्थान मे मामलेदार पद पर नोकरी देनेवाला नेक दिल नेता राजर्षी शाहू महाराज आपके प्रती कितना सहानुभूती रखता था।

आज मुस्लिम नेताओं का मुस्लिम समाज के लिए किये गये काम का विवरण करे तो कब्रिस्तान की बाउंड्री वॉल, मुशायरे का आयोजन, कव्वाली का आयोजन, क्रिकेट के मैचेस, फुटबाल मॅचेस, मुझे एक ऐसा नेता सारे भारत मे मुस्लिम बताओ जो राजर्षि शाहू महाराज से जादा मुसलमानो के तालीमी (शिक्षा), समाजी, और अर्थीक विकास के लिए फिक्रमंद है आज के नेता मुसलमान को बेरोजगारी से मारकर फिर उसे दफनाकर कब्रिस्तान की बाउंड्री वॉल बनाकर उसके मरने के बाद सुरक्षा का इंतजाम कर रहे है

अश्चर्य कि बात तो यह है के इकरा बिस्मी रब्बी कल्लजी खल्क (पढ अपने रब के नाम से) वाली कौम को आज भी शिक्षा का महत्व नही समझ रहा है. 1906 मे शाहू महाराज ने प्रतिष्ठित मुस्लिम लोगो कि सभा ली और मोहमेडन एजुकेशन सोसायटी कि स्थापना कि और इसी के अंतर्गत मुस्लिम बोर्डिंग शुरू कि. विशेष बात यह है के शाहू महाराज खुद इस बोर्डिंग के अध्यक्ष बने. जो किसी दुसरे मराठा, जैन, लिंगायत बोर्डींग के नही बने। और युसुफ अब्दुल्ला को कार्यवाहक बनाया।

मुस्लिम बोर्डींग के लिए शाहू महाराज ने 25000 sq/ फिट जगह दी उसपर इमारत बनाने के लिए 5500 डोनेशन दीया. संस्थान के जंगल से सागवान कि लकडी (111 साल पहले) दी और देखते देखते उस जगह पर दो मंजिला इमारत खडी हो गयी. वार्षिक 250 रू अनुदान भी घोषीत किया. मुस्लिम समाज का शैक्षणिक विकास के लिए शाहू महाराज के योगदान को मुस्लिम समाज कभी भूल नहीं सकता. उन्होने संस्थान के मुस्लिम धार्मिक स्थल दरगाह के उत्पन्न को भी बोर्डींग को दीया. राजर्षी शाहु महाराज की जगह कोई भि नहीं ले सकता.

राजर्षी शाहु महाराज ने मुस्लिम समाज के शैक्षणिक उद्धार के लिए मुस्लीम बोर्डींग की स्थापन की. शाहु महाराज ने मुसलमानों का शैक्षणिक पिछड़ापन दुर करणे के लिए प्रयास किये. मुसलमानों के पिछड़ेपन का मजाक नही उडाया. कठीन परीस्थिती होने पर भी शाहु महाराज ने उस वक्त महात्मा फुले व सावीत्री माता फुले को मदत करने वाले गफ्फार मुन्शी बेग ,उस्मान शेख ,फातेमा शेख इन्हें अपने कार्य से जींदा रखा. शाहु महाराज ने अलग अलग जाती के लिए बोर्डींग्स स्थापन की (मराठा, जैन, लिंगायत). आज भी मुस्लीम बोर्डींग के अध्यक्ष शाहु महाराज ही है. मैने जब मुस्लीम बोर्डींग के संचालक मा.गणीत अज्रेकर साहेब से पूछा की, सभी जाती के लोगो ने आपने आपने बोर्डिंग का अध्यक्ष अपनी अपनी जाती का बनाया है, तो आपने क्यो नही किया..?उसपर गाणी अज्रेकर साहब का जवाब दिल धडकाने वाला था. गणी अज्रेकर साहेब ने कहा के, मुस्लीम बोर्डींग के अध्यक्ष शाहु महाराज ही थे और हमेशा के लिए शाहू महाराज ही रहेंगे. शाहु महाराज कि जगह कोई भी नही ले सकता.

शेख सुभान अली,

अध्यक्ष-दंगामुक्त महाराष्ट्र अभियान

Updated : 26 Jun 2023 2:46 AM GMT
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